देहरादून: उत्तराखंड धामी सरकार ने हाईकोर्ट में दाखिल शपथपत्र में साफ किया है कि राज्य में लागू यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की नियमावली में संशोधन किया जा रहा है। सरकार का कहना है कि लिव-इन रिलेशन से जुड़े नियमों को और सख्त व पारदर्शी बनाया जाएगा ताकि समाज में भ्रम की स्थिति न रहे।
सरकार की ओर से दिए गए शपथपत्र में बताया गया है कि अब यदि किसी रजिस्ट्रीयर द्वारा लिव-इन संबंध के पंजीकरण को अस्वीकार किया जाता है, तो उसके खिलाफ अपील करने की अवधि 30 दिन से बढ़ाकर 45 दिन कर दी जाएगी। इस संशोधन का उद्देश्य लोगों को अपील करने के लिए अधिक समय देना है ताकि किसी को भी प्रशासनिक प्रक्रिया में कठिनाई का सामना न करना पड़े।
संशोधित प्रावधानों में यह भी प्रस्ताव रखा गया है कि यदि किसी रिवाज या परंपरा के कारण लिव-इन संबंध का पंजीकरण मना किया जाए, तो यह प्रतिबंध केवल उन्हीं मामलों में लागू होगा जो UCC की धारा 380 के विरुद्ध हों। इस कदम का मकसद पारंपरिक और आधुनिक मान्यताओं के बीच संतुलन स्थापित करना है।
लिव-इन रिलेशन के पंजीकरण और समाप्ति (टर्मिनेशन) की प्रक्रिया को भी सरल बनाया जा रहा है। इसके तहत अब लोगों को अनावश्यक कानूनी जटिलताओं से राहत मिलेगी और पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी और सुगम बनाया जाएगा। वहीं, रजिस्ट्रीयर और पुलिस के बीच डेटा साझा करने की प्रक्रिया को सीमित करने का प्रावधान किया गया है। यह जानकारी अब केवल रिकॉर्ड-कीपिंग के उद्देश्य से ही साझा की जाएगी ताकि नागरिकों की गोपनीयता सुरक्षित रह सके।
इसके साथ ही, पहचान प्रमाण (आईडी वेरिफिकेशन) को लेकर भी नियमों में लचीलापन लाया गया है। अब पंजीकरण के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं रखा जाएगा, बल्कि नागरिक अपनी सुविधा के अनुसार किसी अन्य वैध पहचान पत्र का उपयोग कर सकेंगे।
धामी सरकार का कहना है कि इन सभी संशोधनों का उद्देश्य UCC को और अधिक व्यावहारिक, पारदर्शी और नागरिक हित में बनाना है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड देश का पहला राज्य है जिसने यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया था, और अब सरकार इसे और प्रभावी बनाने के लिए नियमों में सुधार करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है।





