चमोली: दीपावली से पहले धनतेरस के शुभ अवसर पर उत्तराखंड के पवित्र बदरीनाथ धाम में एक दिव्य और अनोखी परंपरा का आयोजन हुआ। इस दिन भगवान कुबेर, जो धन के अधिष्ठाता देवता माने जाते हैं, उनकी विशेष पूजा-अर्चना की गई। यह परंपरा सदियों से यहां निभाई जा रही है और इसे धन, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
हर वर्ष की तरह इस बार भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में बदरीनाथ पहुंचे, जहां भगवान बद्री विशाल के समीप बिठा कर भगवान कुबेर की पूजा की गई। पुजारियों ने विधि-विधान से पूजन संपन्न कराया और धनतेरस पर कुबेर एवं यमराज दोनों की आराधना की गई।
कुबेर पूजा से मिलती है अक्षय संपन्नता
लोकमान्यता के अनुसार, धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा करने से व्यक्ति को अक्षय धन-धान्य और वैभव की प्राप्ति होती है। भगवान कुबेर को उत्तर दिशा का रक्षक देवता भी कहा जाता है। कहा जाता है कि बदरीनाथ धाम से लेकर भारत-चीन सीमा के अंतिम गांव माणा तक का इलाका भगवान कुबेर की कृपा से समृद्ध है।
पुराणों में भी मिलता है उल्लेख
पुराणों में उल्लेख है कि भगवान कुबेर पहले स्वर्णमयी लंका के अधिपति थे। बाद में उन्हें भगवान शिव के वरदान से धन के देवता का पद प्राप्त हुआ। आज वे भगवान बद्री विशाल के सान्निध्य में प्रतिष्ठित हैं। इसलिए दीपावली से पहले यहां विशेष रूप से कुबेर पूजा की जाती है।
यमराज की आराधना और दीपदान की परंपरा
धनतेरस के दिन बदरीनाथ में मृत्यु के देवता यमराज की पूजा भी विशेष रूप से की जाती है। इस अवसर पर भक्त दक्षिण दिशा की ओर मुख कर दीपक जलाते हैं, ताकि यमराज की दृष्टि उन पर न पड़े और वे अकाल मृत्यु के भय से मुक्त रहें। यह दीपदान दीर्घायु और जीवन की रक्षा का प्रतीक माना जाता है।
स्थानीय जनमानस की आस्था
बदरीनाथ धाम के आसपास के बामणी और पांडुकेश्वर जैसे गांवों में भगवान कुबेर को कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। प्रत्येक महीने की संक्रांति या किसी विशेष पर्व पर ग्रामीण बड़ी श्रद्धा से भगवान कुबेर की पूजा करते हैं और भव्य मेलों का आयोजन करते हैं।
बदरीनाथ धाम में मनाई जाने वाली यह धनतेरस की परंपरा केवल पूजा का उत्सव नहीं, बल्कि धन, धर्म और जीवन के संतुलन का प्रतीक है — जो आस्था और अध्यात्म के साथ समृद्धि का संदेश देती है।





