---Advertisement---

देवभूमि में फिर जले दीप,“भैलो रे भैलो” की गूंज से गूंजी घाटियाँ, इगास बग्वाल ने रौशन की संस्कृति की पहचान

By: Neetu Bhati

On: Saturday, November 1, 2025 10:42 AM

Google News
Follow Us
---Advertisement---

देहरादून। जब मैदानी इलाकों में दिवाली के दीप बुझ चुके होते हैं, तब देवभूमि उत्तराखंड की वादियाँ एक बार फिर उजाले से भर जाती हैं। “भैलो रे भैलो…” की लोकधुनों से आसमान गूंज उठता है, और हर पहाड़ी घर में फिर से दीप जल उठते हैं। यह नज़ारा किसी साधारण पर्व का नहीं, बल्कि इगास बग्वाल का है,जो सिर्फ दिवाली का दूसरा रूप नहीं, बल्कि देवभूमि के दिल की धड़कन है।

इगास बग्वाल उत्तराखंड की संस्कृति, आस्था और कृतज्ञता का पर्व है। इस दिन गायों और बैलों को विशेष रूप से नहलाया जाता है, उनके सींगों में तेल लगाया जाता है और गले में फूलों की मालाएँ पहनाई जाती हैं। यह परंपरा केवल रीति-रिवाज नहीं, बल्कि प्रकृति और पशुधन के प्रति सम्मान का प्रतीक है, क्योंकि पहाड़ों में जीवन धरती और पशु दोनों से गहराई से जुड़ा है।

इगास की कथाएँ, देर से पहुँचा उजाला

लोककथाओं के अनुसार, इगास का संबंध रामायण काल से है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे, तब पूरे देश में दीपावली मनाई गई। लेकिन हिमालय की ऊँची पहाड़ियों तक वह समाचार देर से पहुँचा। कई दिनों बाद जब यहाँ के लोगों को यह पता चला कि प्रभु श्रीराम अयोध्या लौट आए हैं, तब उन्होंने दीप जलाकर दिवाली मनाई और इसी तरह जन्म हुआ “देर से पहुँची दिवाली” यानी इगास बग्वाल का।

दूसरी कथा गढ़वाल के वीर सेनानायक माधो सिंह भंडारी से जुड़ी है। कहते हैं कि जब वे तिब्बत की ओर युद्ध में व्यस्त थे, तो दीपावली तक नहीं लौट पाए। लोगों ने समझा कि वे वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं, लेकिन 11 दिन बाद जब उनकी विजय का समाचार आया और वे विजयी होकर लौटे, तब पूरे गढ़वाल में दीप प्रज्वलित किए गए। तभी से इगास बग्वाल वीरता, धैर्य और विजय का प्रतीक बन गई।

लोकसंस्कृति से जुड़ाव का पर्व

आज भी इगास का दिन उत्तराखंड के गाँवों में उल्लास से मनाया जाता है। लोग पारंपरिक वेशभूषा में नाचते हैं, भैलो खेलते हैं, और घरों में अरसे, भट्ट की चुड़कानी व झंगोरे की खीर बनती है। स्कूलों, कॉलेजों और संस्थानों में लोकनृत्य व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। राज्य सरकार ने भी इस पर्व को राजकीय पर्व का दर्जा देकर पहाड़ी संस्कृति को सम्मान दिया है।

इगास का संदेश, प्रकाश देर से सही, पर आवश्यक है

इगास हमें सिखाती है कि प्रकाश चाहे देर से पहुँचे, उसकी महत्ता कभी कम नहीं होती। यह पर्व सिर्फ दीपों का नहीं, बल्कि हमारी पहचान, संस्कृति और आस्था का उत्सव है। यह याद दिलाता है कि हर अंधकार के बाद उजाला अवश्य आता है।

For Feedback - feedback@example.com

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now

Leave a Comment